Tuesday, September 10, 2013

अब शुरू होगी पदयात्रा।

अब शुरू होगी पदयात्रा। 

कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा और भाजपा की विकास यात्रा के बाद अब पदयात्रा की बारी है। कांग्रेस ने परिवर्तन यात्रा शुरू किया और भाजपा द्वारा किये गए भ्रष्टाचारों को लोगो तक पहुँचा ही रहे थे की जीरम घाटी में हुए वृहद् नक्सली हमलों ने यात्रा को रोक दिया। इस नक्सली हमले में कांग्रेस के कद्दावार नेताओं की मौत हो गयी और बहुत से कार्यकर्ता मारे गए और कुछ कार्यकर्ता एवं नेता हमले में घायल हो गए।  इस दर्दनाक घटना को देखते हुए भाजपा ने अपनी विकास यात्रा बीच में ही बंध कर दिया। जब सब शांत हुआ तब फिर प्रदेश की राजनीती धीरे-धीरे गर्माने लगी।  एक तरफ जहाँ कांग्रेस ने कलश यात्रा शुरू किया तो दूसरी तरफ भाजपा ने फिर से विकास यात्रा शुरू किया। इससे लाभ किसी को हो न हो परन्तु मीडिया को लाभ अवश्य हुआ है विज्ञापन के रूप में। 

अब आते हैं राजनीती के अखाड़े में।  विकास की नदियाँ बहाने के बाद अब भाजपा जुटी हुई है नाराज नेतायों को मानाने तथा समूचे 90 विधानसभा सीटों पर प्रत्याशी चयन के लिए। सीधी सी बात है दमखम रखनेवाले नेता सभी सक्रिय हो गए हैं अपने अपने शेत्रों में और अपना दावेदारी दिखने में।  तय तो वही होगा जो हाई कमान करेगा। इधर कांग्रेस ने सभी विधानसभावार सूचि बना ली है और बड़े नेता दिल्ली में डेट हुए हैं अपने पसंद के उम्मीदवार को टिकेट दिलाने में।  कोई राहुल गाँधी से मिल रहा है, तो कोई महंत जी से, कोई हरिप्रसाद जी से तो कोई दिग्विजय सिंह जी से। कुलमिलाकर मेलजोल चल रहा है। तय तो वाही होगा जो स्क्रीनिंग कमिटी करेगी और जिनके ऊपर हाई कमान का आशीर्वाद होगा।  लेकिन यहाँ हाई कमान हम किसे बोले ? केंद्रीय नेत्रित्व को या प्रदेश के नेतृत्त्व को ? छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस में भी धड़ा बना हुआ है। एक तरफ संगठन खेमा जिसमे महंत, रविन्द्र चौबे, सत्यनारायण शर्मा हैं , दूसरी तरफ शक्तिशाली जोगी खेमा और तीसरी तरफ भूपेश खेमा। जोगी खेमा को ज्यादा तवज्जो न मिलने के कारण वे नाराज चल रहे हैं और  अकेले ही संगठन खेमा के विपरीत सभाएं ले रहें हैं।  अब मतदाता किसकी सुने ? कांग्रेस के संगठन खेमे की या जोगी खेमे की या भाजपा की ? मतदाता बहुत ही कन्फ्यूज्ड हैं। 

भाई कुछ भी हो इस बार चुनाव दिलचस्प होने वाला है।  यह पहला चुनाव होगा जिसमे विद्या भैया नहीं होंगे  साथ ही श्यामा भैया , नन्द कुमार पटेल जी , महेंद्र कर्मा जी, उदय मुदालियर जी भी नहीं होंगे।  ठीक इसी तरह भाजपा में दिलीप सिंह जूदेव जी, बलिराम कश्यप जी भी नहीं होंगे। साथ ही यहाँ देखने मिलेगा की अन्य पार्टियाँ जैसे स्वाभिमान मंच , राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, संगमा जी की पार्टी, कमुनिस्ट पार्टी इत्यादि किसे लाभ पहुंचती है ? भाजपा में भले अंदरूनी मतभेद हों लेकिन वो सामने नहीं दिख रहा है , परन्तु कांग्रेस का मतभेद जग जाहिर हो जा रहा है। ऐसी स्तिथि में कौन सी पार्टी बहुमत लाएगी और कौन सी पार्टी किंग मेकर साबित होगी यह समय के गर्भ में है। 

भगवन गणेश जी विराज गए हैं , अब त्येहारों का सिलसिला शुरू हो जायेगा और इसी के साथ सभी पार्टियों के नेताओं का पैदल यात्रा भी। अब नेतागण पूजा मंडपों में, कीर्तनों में , रावण जलाने के मौके पे , जगराता में इत्यादि स्थानों पे पाए जायेंगे जनसंपर्क करते हुए। जनसंपर्क तो गाड़ियों से नहीं होगी ना , पैदल यात्रा करना होगा।  ये राजनीती भी बड़ी अजीब है साड़े चार साल गाड़ियों में घुमाती है और बाकि पांच महीने पैदल यात्रा करवाती है। भैया यह पैदल यात्रा या जनसंपर्क  कोई  खेल नहीं है, यह बारहवीं के परीक्षा जैसा है , इसमें  कैसा उत्तर मतदाता देते हैं उस पर मार्क्स मिलेंगे नेतायों को। जिस पार्टी के जितने नेता ज्यादा पास होंगे वही पार्टी शाशन करेगी या यूँ बोले "राज " करेगी। तो भैया तैयार हो जाओ परीक्षा देने और पास होने के लिए। 













































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