मुझे भी जीने दो !
क्या मुझे जीने का हक नहीं है? हम मनुष्य के बरबर्ता का शिकार हो रहे हैं।कब तक ऐसा चलेगा / हम तो समूचे संसार की जान है यूँ कहें की हम पृथ्वी के फेफड़े हैं / हम ही तो हैं जो वातावरण से प्रदुषण को अपने ऊपर लेते हैं और आप मनुष्य के लिए ताज़ा ऑक्सीजन देते हैं जिससे की आप सांस ले सके / हम आपका इतना ख्याल रखते हैं फिर भी हमारे साथ न्याय क्यूँ नहीं होता ?
अब आ रही है होली / अब हमे लोग काटेंगे और होलिका दहन करेंगे / क्या होलिका दहन के लिए जीवित -अर्ध जीवित पेड़ो को काटना जरुरी है/ जो पेड़ मृत हो गए हैं उनको आप जलाइए, न की जीवीत -अर्ध जीवित पेड़ो को उनके समय काल के पहले ही मार डालेंगे / क्या इंसानियत येही सिखाती है / क्या हममे जान नहीं होती है ?
ये आप हमारे कष्टों को नहीं समझेंगे / हम बोल जो नहीं पाते हैं। तभी तो हमारे पेड़ो पर लगे फल , बेर , अमरुद इत्यादि फलों को प्यार से तोड़ने के बजाये पत्थर मार के तोड़ते हैं/. क्या उस समय आप को नहीं लगता है की पेड़ों को भी चोट लगती है/ जब आप हमारे डालियों को तोड़ते हैं तब ऐसा लगता है की हमारे शारीर का कोई अंग काट ले गया / फिर भी हम चुप रहते हैं क्यूँ की हमारे पास जुबां ही नहीं है/. हम कैसे कहें हमारे तकलीफों को।/
गर्मी के समय हम राहगीरों को आपनी छाओं से उन्हें ठंडक पहुंचाते हैं, कड़ी दुप से उनको बचाते हैं, हवा के झोंको से उन्हें पसीने से कुछ हद तक छुटकारा दिलाते है/. बारिश के मौसम में राहगीरों को हम अपने आवरण से उन्हें बारिश की बूंदों से बचाने की कोशिश करते हैं/ हमारे डाल में कितने पक्षी अपना घर बसाते हैं, फिर उनके बच्चे होते हैं और वे भी धीरे धीरे बड़े होकर अपने रास्ते चले जाते हैं।हम इतने काम आने के बावजूद लोग हमसे कठोर व्यव्हार करते हैं / जब चाह पत्ते तोड़ डाले, टहनियों को काट डाले , इससे हमे कष्ट पहुँचता है जिसे मनुष्य जाती को सम्हाजना होगा /
विकास होना चाहिए किन्तु किसी पेड़ की जान न लेकर होना चाहिए /.अभी हमने देखा की रास्ते चौडीकरण करने के लिए न जाने कितने जीवित पेड़ो को अकाल मौत दे दी गयी /. शहर बसाने के लिए कितनो की आगाम बलि चड़ा दी गई /. ऐसा नहीं होना चाहिए / दिनों दिन औधोगीकरण बढेंगे और हमारी जान आफत में आएगी/
कितने खली ज़मीन पड़े हैं, क्यूँ नहीं मनुष्य जाती वहां वृक्षारोपण करते हैं ? यदि वृक्षारोपण होता भी है तो उसका सही देखभाल नहीं होता है जिससे बहुत से पौधे/पेड़ या तो सुख जाते हैं या मर जाते हैं /.केवल दिखाने भर के लिए वृक्षारोपण न किया जाये,उसका समुचित देखभाल भी अनिवार्य है/. जितने ज्यादा पेड़-पौधे होंगे पृथ्वी उतना ही ठंडक रहेगी /बे मौसम बारिश नहीं होगी, गर्मी समय से पहले नहीं आएगी , सभी का संतुलन बना रहेगा / ग्लेसिएर अभी जितना तेजी से पिघल रहा है, पेड़-पौधों की अधिकता के कारन वह जल्दी नहीं पिघलेगी / पृथ्वी को तब ज्यादा खतरा नहीं रहेगा / पेड़ से ही जीवन है और जीवन से हम हैं।/
हम में भी प्राण है/ हम पानी को सूर्य की रौशनी के माध्यम से (photosynthesis ) अपना भोजन तैयार करते हैं और पानी को हमारे सभी टहनियों से गुजार कर पत्तों तक पहुंचाते हैं जिससे पूरा पेड़ हरा-भरा दीखता है/. मनुष्य और जानवरों में जैसे रक्त वाहिनी है वैसे ही हमारे शारीर में भी है /. जब आप किसी पेड़ या पौधे को काटेंगे तो उससे पानी जैसा रिसाव होता है, वाही हमारे लिए रक्त संचार का काम करती है और खाध्य पदार्थों को अपने जगह पहुंचती है/.
आज समय आ गया है की हम पेड़-पौधों को अधिक से अधिक बचाने का प्रयास करें और जहाँ तक हो सके अधिक से अधिक जगह पर वृक्षारोपण कर पृथ्वी को बचाएं जिससे की आप और हम दोनों बच सकते हैं/ ध्यान में रखिये की हम पृथ्वी के फेफड़े हैं, और हम ही आपको स्वच्छ वातावरण के साथ स्वच्छ हवा देंगे/
इसलिए सभी मनुष्य जाती से हम अनुरोध करते हैं की कम से कम होली में हमे बख्श दे और हमारे रक्षा करने के लिए आगे आयें।/. होली ही क्यूँ किसी भी समय के लिए हो पेड़ो को बख्श ज़रूर दें येही इल्तज़ा है आपसे /.
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